भारत की शिक्षा व्यवस्था में 2026 से एक बड़ा बदलाव आने वाला है, और honestly, मैं कह सकता हूँ कि यह काफी दिलचस्प है। सरकार ने ऐलान किया है कि ओपन बुक एग्जाम सिस्टम यानी कि खुली किताब परीक्षा अब अनिवार्य कर दी जाएगी। अब आप सोच रहे होंगे, इसका मतलब ये है कि छात्र अपने साथ किताबें रख सकते हैं? हां, बिल्कुल! ये कदम विद्यार्थियों पर से रटने का दबाव कम करने और उन्हें ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान हासिल करने के लिए प्रेरित करने का मकसद रखता है।
अब यहाँ बात ये है कि Open Book Exam क्या है? तो मैं बता दूं, यह ऐसी परीक्षा प्रणाली है जिसमें छात्रों को परीक्षा हॉल में अपनी किताबें, नोट्स या कोई भी अध्ययन सामग्री साथ लाने की आजादी मिलती है। लेकिन इसकी सबसे खास बात ये नहीं कि बस किताबें ले जाओ, बल्कि यह तो मुख्य रूप से समझ, विश्लेषण और समस्या हल करने की क्षमता को परखने का तरीका है। यानी सवाल ऐसे होंगे कि न सिर्फ याद करने की कोशिश करनी होगी बल्कि समझदारी से जवाब देना पड़ेगा।
तो फिर नया नियम क्यों लाया गया? मेरी समझ में आया कि शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक पारंपरिक परीक्षाएं हमें सिर्फ रटने पर ही केंद्रित कर देती थीं। इससे न तो बच्चों का असली कौशल विकसित हो रहा था और न ही वो जिंदगी के मुकाबले तैयार हो पा रहे थे। देखिए, वहाँ मानसिक दबाव बहुत बढ़ रहा था और कुल मिलाकर विद्यार्थियों को जरूरी प्रैक्टिकल स्किल्स सीखने का मौका नहीं मिल रहा था। वहीं विदेशों में तो इस तरह की परीक्षाएं बहुत पहले से चल रही हैं, और भारतीय छात्रों को उनसे तुलना करना पड़ा। इसलिए सरकार ने फैसला किया है कि 2026 से स्कूलों और यूनिवर्सिटी स्तर पर Open Book Exams लागू किए जाएंगे।
अब बात करते हैं फायदे की—तो मुझे लगता है कि इस परिवर्तन के बहुत सरे सकारात्मक पहलू हैं। जैसे अब रटने का ज़ोर नहीं रहेगा, बल्कि समझकर पढ़ाई करनी होगी। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ेगा क्योंकि किताबें साथ होने से चिंता कम हो जाती है। फिर, ऐसे सवाल आएंगे जो सीधे किताब से कॉपी नहीं किए जा सकेंगे बल्कि उन्हें समझना पड़ेगा—मतलब प्रैक्टिकल ज्ञान का महत्व बढ़ेगा। और मुझे तो यह भी अच्छा लगा कि यह तरीका ग्लोबल मानकों के अनुरूप भी माना जा रहा है।
लेकिन बदलते हुए परीक्षा पैटर्न में क्या-क्या बदलाव आएंगे? तो सीधे-सीधे कहूं तो सवाल विश्लेषणात्मक होंगे या केस स्टडी बेस्ड। यानी सीधा-सादा जवाब देना अब जरूरी नहीं रहेगा; बल्कि समझदारी और रिसर्च भी दिखानी होगी। क्वेश्चन ऐसा होगा जिससे पता चलेगा कि छात्र कितनी गहराई तक सोच सकते हैं या उनके पास समस्या हल करने की कितनी क्षमता है। मूल्यांकन भी अब ज्यादा पारदर्शी और आधुनिक तरीके से होगा—शायद कंप्यूटर आधारित सिस्टम या कॉम्पिटेटिव टेस्टींग जैसी चीजें आएंगी।
अब ऐसे कौन-कौनसे कक्षाओं में यह लागू होगा? शुरुआत में यह नियम 9वीं से 12वीं तक के छात्रों पर लागू होगा—साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर भी शुरूआत होगी। धीरे-धीरे इसे हर बोर्ड और कॉलेज में फैलाया जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे लाभान्वित हो सकें।
छात्रों और अभिभावकों ने इस बदलाव को लेकर कैसी प्रतिक्रिया दी? मुझे लगता है कि अधिकांश students ने इसे गंभीरता से लिया है; उन्होंने कहा है कि अब पढ़ाई बोझ जैसी चीज़ नहीं लगेगी बल्कि सीखने का सही माध्यम बनेगी। हाँ, कुछ माता-पिता सोचते हैं कि अगर सही मॉनिटरिंग न हो तो छात्र पढ़ाई के प्रति लापरवाह हो सकते हैं—तो यहां थोड़ी सतर्कता रखना जरूरी लगेगा।
अंत में मैं कह सकता हूँ कि Open Book Exam 2026 वाकई हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में एक नई शुरुआत लाने वाला कदम साबित हो सकता है। यह बच्चों को केवल अंक पाने तक सीमित रहने वाले रटंत तरीकों से बाहर निकालकर उन्हें ज्ञान आधारित बनाता दिख रहा है—मजे की बात ये है कि इसमें किस तरह का सुधार होगा, वो देखने वाली बात होगी।
तो फिर कुछ FAQs भी सुनिए:
Q1. ये नई प्रणाली कब शुरू होगी?
हाँ, दोस्तों, 2026 से धीरे-धीरे सभी स्कूल व विश्वविद्यालयों में इसे अपनाया जाएगा—एक तरह से इसका ट्रायल वॉक शुरू हो जाएगा उस समय।
Q2. क्या किताबें साथ रखना जरूरी होगा?
बिलकुल! अपने नोट्स या Study Material लेकर जाने की छूट रहेगी—कोई दिक्कत नहीं।
Q3. इससे नकल बढ़ेगी?
देखिए इतना आसान नहीं क्योंकि सवाल अब विश्लेषणात्मक होंगे—तो बस कॉपी-पेस्ट काम नहीं करेगा।
Q4. सभी बोर्ड इसे लागू करेंगे?
हाँ यार! CBSE, ICSE समेत दूसरे बोर्ड भी धीरे-धीरे इसे अपनाएंगे।
Q5. छात्राओं को कैसी तैयारी करनी चाहिए?
बस रटना बंद करो! Instead, समझो, लिखो और सोचने की आदत डालो—यही असली कुंजी होगी।
तो मुझे लगता है कि ये बदलाव सचमुच काफी रोमांचक हैं—क्योंकि इनसे हमारी शिक्षा व्यवस्था आगे बढ़ेगी और बच्चों का भविष्य मजबूत बनेगा (बिलकुल मैंने देखा ही है)।

JAKIR HOSSAIN
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