PM Modi's 'swadeshi' push ahead of Trump's additional tariffs
पिछले कुछ वर्षों से दुनिया एक नए आर्थिक संकट का सामना कर रही है, जिसे विशेषज्ञ “ट्रेड वॉर” यानी व्यापार युद्ध का नाम देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता आर्थिक तनाव। जब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ आपस में भिड़ती हैं, तो इसका असर वैश्विक बाज़ार पर साफ़ दिखाई देता है। अमेरिका ने चीन पर लगातार टैरिफ बढ़ाए और चीन ने भी बदले में कई अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगा दिए। इस युद्ध का असर न केवल दोनों देशों पर बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा, और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा।
भारत, जो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, अमेरिकी टैरिफ की वजह से कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। खासतौर पर कृषि, इस्पात, एल्यूमिनियम और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों को सीधा नुकसान पहुंचा है। इसी बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वदेशी’ का नारा बुलंद किया, ताकि भारत अमेरिकी दबाव में झुकने के बजाय आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा सके।
मोदी का यह संदेश सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं था, बल्कि बदलते वैश्विक व्यापार समीकरणों में भारत को सही दिशा दिखाने का प्रयास भी था। उन्होंने भारतीयों से कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता दें, घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दें और अमेरिका जैसे देशों पर अपनी निर्भरता कम करें।
मोदी का पहला बड़ा संदेश था – स्वदेशी। उन्होंने साफ कहा कि अगर अमेरिकी टैरिफ भारत को प्रभावित कर रहे हैं तो हमें अपनी ताकत पहचाननी होगी। आत्मनिर्भर भारत का मतलब सिर्फ घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि यह भी है कि भारत दुनिया को दिखा सके कि हम अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं हैं।
उनके अनुसार, स्वदेशी अपनाने से भारत का आयात घटेगा, व्यापार घाटा कम होगा और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। मोदी ने इसे ‘लोकल को ग्लोबल’ बनाने का अभियान बताया। यानी भारत का हर उत्पाद इतना सक्षम होना चाहिए कि वह न सिर्फ घरेलू बाजार बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रतिस्पर्धा कर सके।
मोदी का दूसरा संदेश था – किसानों और उद्योगपतियों को यह भरोसा दिलाना कि सरकार उनके साथ खड़ी है। अमेरिकी टैरिफ से सबसे ज़्यादा नुकसान कृषि और छोटे उद्योगों को हो रहा था। अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग घट रही थी, जिससे निर्यातक परेशान थे।
मोदी ने कहा कि यह मुश्किल समय है, लेकिन हमें इसे अवसर में बदलना है। किसानों को नई तकनीक, बेहतर सुविधाएँ और वैश्विक बाजार तक पहुँच दिलाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसी तरह उद्योगपतियों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि वे निर्यात बढ़ा सकें और घरेलू उत्पादन में आत्मनिर्भर बनें।
मोदी का तीसरा बड़ा संदेश निर्यातकों के लिए था। उन्होंने साफ कहा कि अगर अमेरिका अपने दरवाजे बंद कर रहा है तो भारत को नए दरवाजे तलाशने होंगे। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में भारत के पास अपार संभावनाएँ हैं।
उन्होंने निर्यातकों से कहा कि हमें गुणवत्ता पर समझौता किए बिना नए बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। सरकार भी इसके लिए नीतियाँ बना रही है और विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कर रियायतें और सब्सिडी देने पर विचार कर रही है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक टकराव कोई नई बात नहीं है। अमेरिका लंबे समय से भारत के खिलाफ कई व्यापारिक शर्तें रखता रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में यह टकराव और भी तेज़ हो गया।
ट्रंप प्रशासन ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अपनाई। इसका मतलब था – अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की रक्षा करना। इसी नीति के तहत उन्होंने कई देशों, खासतौर पर भारत और चीन पर भारी टैरिफ लगाए। अमेरिका चाहता था कि विदेशी कंपनियाँ उसके बाजार का इस्तेमाल करें लेकिन अमेरिकी कंपनियों के लिए भी रास्ता खुला रहे।
भारत से अमेरिका को सबसे ज़्यादा निर्यात होने वाले उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया गया। जैसे कि एल्यूमिनियम, स्टील, टेक्सटाइल और कृषि उत्पाद। इससे भारतीय निर्यातकों की लागत बढ़ गई और उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता कम हो गई।
भारत के MSME सेक्टर को इस व्यापार युद्ध से सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ। जो छोटे उद्यमी अमेरिका में अपने सामान बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे, उन्हें अब नए बाजार तलाशने पड़े।
मोदी ने कहा कि अगर हम ‘मेक इन इंडिया’ पर फोकस करेंगे तो विदेशी टैरिफ का असर हम पर कम होगा। जब घरेलू बाजार में ही हमारे पास विकल्प होंगे तो हमें आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
‘वोकल फॉर लोकल’ सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि यह भारत की आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी है। मोदी ने कहा कि जब हम अपने स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देंगे तो किसान से लेकर व्यापारी तक सभी को फायदा होगा।
जब देश में उत्पादन बढ़ेगा, तो रोजगार भी बढ़ेगा। मोदी का मानना है कि इस व्यापार युद्ध को भारत नए रोजगार के अवसरों में बदल सकता है।
भारत को अब केवल अमेरिकी बाजार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यूरोप, अफ्रीका और एशिया में भी भारत के उत्पादों की बड़ी मांग है।
भारत ASEAN, BRICS और अन्य क्षेत्रीय मंचों के साथ व्यापारिक साझेदारी को मजबूत कर रहा है। इससे भारत को नए बाजार और निवेश मिल सकते हैं।
भारत इस मामले को WTO जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठा रहा है ताकि अमेरिका जैसे देश मनमाने तरीके से टैरिफ न लगा सकें।
JAKIR HOSSAIN
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